कुदरत है ये



कुदरत है ये। 

ना कोई धर्म है इसका। 

ना किसी से अधीन।


इसे बाट नहीं सकते। 

जैसे खुद अपने वजूद को मिटा नहीं सकते।


रंगीन भावनाओ से भरपूर है ये।

कहीं बच्चे को जन्म देती मा के गरजने से हुआ उत्तेजित।

तो कहीं डूबते सूरज सा नाजुक, गमगीन।


कुछ दिन इसके नाम रटना सही नहीं।

जैसे किसी अपने से खुदगर्ज होना खुद्दारी नहीं।


किसी नासमझ जानवर का खेल नहीं।

किसी आशिक के नज्मों का परिचय है।

कहीं जीवित, तो कहीं मृत है।

कहीं पानी, तो कहीं पत्थर।

कहीं भीगा हुआ, तो कहीं सूखा है।

कहीं वेरान रेत का ढेर है, तो कहीं गहरा समंदर।

कहीं बारिश है, तो कहीं जानलेवा ठंडक।

कहीं ऊपर, तो कहीं नीचे है।

कहीं धरती, तो कहीं आसमान।

कहीं अल्लाह है, तो कहीं भगवान।

कहीं ये दो नो है, तो कहीं इंसान।


प्राणदाता है ये।

हर एक जीव का घर है, संसार है ये।

प्राणहर्ता भी ये।

हर एक को समा देनेवाला ब्रह्माण्ड भी ये।

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